मुस्लमान क़ुर्बानी ज़रुर करें, मगर दिखावे के लिए नहीं : मुफ्ती रौशन रजा मिस्बाही अजहरी

धुरकी(गढ़वा)/बेलाल अंसारी

इस्लामी साल का आखिरी महीना चल रहा है और इस महीने के आते ही पूरी दुनिया के मुसलमान हज करने के लिए मक्का शरीफ की पवित्र यात्रा पर निकलते हैं। और वहाँ जा कर हज व उमरा कर के अपने आप को भाग्य शाली समझते हैं. क्यूँ की हर व्यक्ति के लिए वहाँ जाना सम्भव नहीं है, वहाँ तो वही जाता है जिस का वहाँ से बुलावा आया हो और जो धन वान हो। और साथ ही ये महीना इतना महत्वपूर्ण है की किसी भी महीने मे इस्लाम की सारी इबादत जमा नहीं हो सकती मगर इस महीने मे एक साथ मुस्लमान इस्लाम की तमाम ज़रूरी इबादत अदा कर सकता है।
नमाज़, रोजा, हज, जकात, जितनी भी महत्त्वपूर्ण इस्लाम धर्म की परंपराएं हैं सब की अदायगी होती है.
और इस महीने मे जो नेक काम पूरी दुनिया के मुस्लिम समुदाय के लोग करते हैं वो ये है कि इस महिने की दस तारीख को नमाज़ ए ईद अदा करते हैं और अपने जानवर की क़ुरबानी देते हैं।
ये क़ुरबानी भी सब के लिए जरूरी नहीं है बल्कि क़ुरबानी वो देगा जो धनवान हो यानी जिस के पास लगभग 51 हजार रुपये उस की ज़रूरत यानी कर्ज़ अथवा दूसरी चीजों से ज़्यादा हो उस पर क़ुरबानी वाजिब है।
क़ुरबानी है क्या? अखिर इस की इतिहास क्या है? तो सुनें। अल्लाह के नबी हजरत इब्राहिम की सुन्नत है, यानी आज से हजारों साल पहले अल्लाह ने हजरत ए इब्राहिम को बुढ़ापे मे एक हसीन व प्यारा बेटा दिया जिन का नाम हजरत ए इस्माईल था, अल्लाह ने उन से कहा जो चीज़ तुम्हारे पास सब से ज्यादा महबूब और पसंदीदा हो उस की बलिदान दो, आप ने नज़र दौड़ाई मग़र बेटे से ज़्यादा कोई प्यारा नज़र नहीं आया तो आप ने बेटे को ही अल्लाह के लिए बलिदान देने को तैयार हो गए. उसी सुन्नत को बाकी रखते हुए हर धन वान व पूंजी वाले मुस्लिम पर ज़रूरी है कि वो एक जानवर की क़ुरबानी करे.
मगर क़ुरबानी करते वक्त हमारी नियत क्या होनी चाहिए? क़ुरबानी हम केवल अल्लाह को राज़ी करने के लिए करें उस मे और किसी प्रकार की नीयत ना हो। जैसे बहुत से मुस्लमान दिखावा करते हैं, बड़े बड़े, क़ीमती जानवर की कुर्बानी देते हैं इस लिए कि लोग उन की प्रशंसा करें, समाज मे उन का बड़ा नाम हो. अगर कोई व्यक्ति इस लिए क़ुरबानी करता है तो उस की क़ुरबानी कुबूल नहीं होती बल्कि उस को रद्द कर दिया जाता है।
क्यूँ की अल्लाह ने कुरान मे इर्शाद फरमाया :की तुम जो कुर्बानी करते हो ना उस जानवर का खून तो जमीन मे गिर जाता है और गोश्त और मास तो तुम खुद खा जाते हो तो अल्लाह तक क्या पहुंचता है? केवल हमारी नियत.
अगर किसी की नीयत मे ही खोट हो तो उस की कुर्बानी कैसे मकबूल होगी.
इस लिए तमाम मुस्लिम समुदाय के लोगों से अनुरोध है कि आप जरूर क़ुरबानी करें मगर दिखावा के लिए नहीं.
और सारा गोश्त खुद ही ना खा जाएं बल्कि आस पास के कमजोर व गरीब लोगों का खयाल करें.

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