भवनाथपुर: 1101 कुंडीय विश्वशांति वैदिक महायज्ञ का आयोजन, संत प्रवर विज्ञान देव जी महाराज के समक्ष 500 लोगो ने ली दीक्षा

भवनाथपुर(गढ़वा)/जुल्फिकार


अध्यात्म मानव जीवन का अपरिहार्य आवश्यकता है। इसके द्वारा हमारे जीवन का संपूर्ण विकास होता है। भारतीय संस्कृति अत्यंत समृद्ध है जिसने विरासत के रूप में आध्यात्मिकता को मनाव कल्याण के लिए सहज रूप में प्रदान किया है।किन्तु आज के युग की बढ़ती हुई अतिभौतिकवादी प्रवृति के चलते हम भारतीय संस्कृति के सनातन वैदिक परंपराओं से दूर होते जा रहे हैं। धर्म , अर्थ, काम और मोक्ष की ये चार पुरुषार्थ ही भारतीय संस्कृति का आधार है जिसकी सिद्धि मानव जीवन का परम उद्देश्य है। धर्म पूर्वक ही अर्थ और काम की प्राप्ति श्रेयष्कर है। अर्थ और काम की प्रासंगिकता और प्रयोजन मर्यादित है। मुख्य पुरुषार्थ तो मोक्ष है। किन्तु उसका आरम्भ भी धर्म से ही होता है।
उक्त बातें विहंगम योग संस्थान के संत प्रवर श्री विज्ञान देव जी महाराज ने बोकारो स्टाइल माइन्स कॉलेज सिंदुरिया,भवनाथपुर परिसर में आयोजित दो दिवसीय जय स्वर्वेद कथा और 1101 कुंडीय विश्वशांति वैदिक महायज्ञ के पावन अवसर उपस्थित हजारों अनुयायियों में मध्य व्यक्त किये।
उन्होंने कहा कि भारत की आत्मा का नाम ही अध्यात्म है। आध्यात्मिक महापुरुषों के बदौलत ही भारत विश्व गुरु रहा है, विश्वगुरु है और मैं कहता हूं भारत विश्व गुरु रहेगा।
महाराज जी ने कहा कि मानव के मन में अशांति है और जब तक यह अशांति है तब तक विश्व में शांति की कल्पना नहीं की जा सकती। अनियंत्रित मन के कारण ही समाज में अनेकानेक समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। मानव मन की अशांति को विहंगम योग की ध्यान साधना के द्वारा दूर किया जा सकता है। मन के अनियंत्रण से ही अनेक प्रकार की विसंगतियां हमारे भौतिक जीवन मे बढ़ रही हैं।
मन के असंयम से ही आज घर परिवार एवं विश्व मे समस्याएं बढ़ रही हैं। इसीलिए यूनेस्को की एक प्रस्तावना में कहा गया कि युद्ध की प्राचीरें या यूं कहें कि समस्याओं का आरंभ हमारे मन के अनियंत्रण से होता है अतः मन पर नियंत्रण आवश्यक है।


इसके पूर्व प्रातः6 से 8 बजे तक शारीरिक आरोग्यता के निमित्त आश्रम से आए कुशल योग प्रशिक्षकों द्वारा आसन प्राणायाम और ध्यान का सत्र संचालित हुआ। जिसमे हजारों योग साधक अनेक असाध्य रोगों से निज़ात पाने का गुर सीखे। दिन में 11 बजे से 1101 कुंडीय विश्वशांति वैदिक महायज्ञ का शुभारंभ संत प्रवर श्री विज्ञान देव जी महाराज के कर कमलों द्वारा अ अंकित श्वेत ध्वजारोहण कर दीप प्रज्जवन के साथ हुआ।
भव्य एवं आकर्षक ढंग से सजी 1101 कुण्डीय यज्ञ वेदियों में वैदिक मंत्रों की ध्वनि से संपूर्ण वातावरण शुचिता को धारण करते हुए गुंजायमान हो उठा। हजारों दंपत्तियों ने व्यष्टिगत एवं समष्टिगत लाभ हेतु वैदिक मंत्रोंच्चारण के बीच यज्ञ कुंड में आहुतियों को प्रदान किये।
यज्ञ वेदी से निकल रहे धूम्र से आस. पास के गाँवों का संपूर्ण वातावरण परिशुद्ध होने लगा। यज्ञ के पश्चात संत प्रवर श्री महाराज के दर्शन के लिए अनुयायियों का भीड़ उमड़ पड़ा। 1101 कुंडों से निकलते यज्ञीय धूम्र से सम्पूर्ण वातावरण परिशुद्ध हो दिव्य परिवेश का निर्माण हो उठा।
यज्ञ के उपरांत मानव मन की शांति व आध्यात्मिक उत्थान के निमित्त ब्रह्मविद्या विहंगम योग के क्रियात्मक ज्ञान की दीक्षा आगत नए जिज्ञासुओं को दिया गया। जिसमें लगभग 500 नए जिज्ञासुओं ने ब्रह्मविद्या विहंगम योग के क्रियात्मक ज्ञान की दीक्षा को ग्रहणकर अपने जीवन का आध्यात्मिक मार्ग प्रसस्त किया।
इस आयोजन में प्रतिदिन निःशुल्क योग, आयुर्वेद, पंचगव्य, होम्योपैथ आदि चिकित्सा पद्धतियों द्वारा कुशल चिकित्सकों के निर्देशन में रोगियों को चिकित्सा परामर्श भी दिया गया। जिसका लाभ आगत भक्त शिष्यो के साथ क्षेत्रीय लोग भी प्राप्त कर रहे थे। आगत भक्तों के लिए अनवरत भण्डारा चल रहा है।

इस मौके पर स्थानीय विधायक भानु प्रताप शाही पहुंचकर संत प्रवर श्री विज्ञान देव जी महाराज से आशीर्वाद प्राप्त किया। उन्होंने स्वयं व क्षेत्रवासियों के लिए सुख शांति और समृद्धि की कामना किया।
कार्यक्रम में विहंगम योग संत समाज झारखंड के अध्यक्ष राधाकृष्ण सिन्हा, उपाध्यक्ष यू पी सिंह, सुरेंद्र सिंह, महामंत्री ललित सिंह, जिला संयोजक विवेक प्रसाद गुप्ता, उपेंद्र मिश्रा, गुप्तेश्वर पाठक आदि गणमान्य व्यक्तियों का विशेष योगदान रहा।

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